मेरे कमरे के सामने एक मकान है। न जाने कब से खाली पड़ा है। हालांकि ये घर भी किराए का ही है, पर यहाँ कुछ लोग रहते हैं। चहल पहल बानी रहती है हर वक़्त । लड़ाईयां होती हैं तोह कुछ ज़िंदा सा, इंसानो वाला लगता है। कोई कबूतर भी कभी यहाँ आकर नहीं बैठता। सब उस खली मकान के छज्जे पर बैठे रहते हैं। काफी जुदा जुदा से हैं ये दोनों। अपना कमरा भी अच्छा ही है, फिर भी कभी कभी उस मकान की कुंडी खोलने का मन करता है।