अब तारे नहीं दिखते..

अब तारे नहीं दिखते। ये भी नहीं कि बारिश है, या ठण्ड का मौसम है और कोहरे की धुंध में आसमान सफ़ेद हो चला है। ऐसा भी नहीं कि ये सिर्फ मेरी ही आँखों का पर्दा है। कुछ और ही बात है, पहेली है, बस मैं हूँ जो उलझा है। सोचता हूँ कि सच ही थे या बचपन की कहानी थे मेरे, यहीं तो हुआ करते थे वो तारे, हर शाम को आया करते थे, ठेहरते भी थे रात भर।  ना जाने क्या सोच रहा था जो अब तक ख़याल नहीं किया, ना जाने क्यूँ पर अब तारे नहीं दिखते।