स्कॉलर न बनो।

स्कॉलर न बनो , इंसान बनो, अरे भाई कुछ ऐसा लिखो जो समझ में आये। वही बात ज़रा आसानी से केह दो।आहिस्ता आहिस्ता इन लफ़्ज़ों को भी घुल जाना है उसी ज़ुबां में जो मैं और तुम समझते हैं। लहजा तो आवाम का है, आवाम कहाँ स्कॉलर है। माना मुझे सीखने का शौक़ भी है, पर कहाँ ये सब याद रेहने वाला है। तुम तो कहीं से पढ़ कर या देख कर ये टेढ़े मेढ़े अलफ़ाज़ लिख देते हो, मुझे फिर गूगल करना पड़ जाता है। जो समझ में ना आये वही उर्दू है क्या? तुम्हे परवाह भी है की मैं समझ रहा हूँ या नहीं। शिकायत करता हूं तो केह देते हो कि खुद के लिए लिखा था तुमने। फिर जब खुद के लिए लिखा था तो मुझे पढ़ाया ही क्यूँ? क्यों केहते  हो कि "एक पके माटी के पात्र में दुग्ध जल मिश्रित शरकरा युक्त पर्वतीय बूटी प्रदान करो", इसका क्या मतलब है? कह दो "एक प्याली चाय दे दो।" लफ़्ज़ों से रॉब न खाओ, स्कॉलर न बनो।